ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते शफ़क़त अमानत अली
ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही शफ़क़त अमानत अली
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ शफ़क़त अमानत अली
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