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स्वप्निल तिवारी

1984 | मुंबई, भारत

नयी नस्ल के नुमाइन्दा शायर

नयी नस्ल के नुमाइन्दा शायर

स्वप्निल तिवारी

ग़ज़ल 34

नज़्म 6

अशआर 13

ये ज़िंदगी जो पुकारे तो शक सा होता है

कहीं अभी तो मुझे ख़ुद-कुशी नहीं करनी

सारा ग़ुस्सा अब बस इस काम आता है

हम इस से सिगरेट सुलगाया करते हैं

और कम याद आओगी अगले बरस तुम

अब के कम याद आई हो पिछले बरस से

बड़े ही ग़ुस्से में ये कह के उस ने वस्ल किया

मुझे तो तुम से कोई बात ही नहीं करनी

मेरे ता'वीज़ में जो काग़ज़ है

उस पे लिक्खा है मोहब्बत करना

चित्र शायरी 1

 

वीडियो 9

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
ऐसी अच्छी सूरत निकली पानी की

स्वप्निल तिवारी

किरन इक मोजज़ा सा कर गई है

स्वप्निल तिवारी

किसी ने भी न मेरी ठीक तर्जुमानी की

स्वप्निल तिवारी

धूप के भीतर छुप कर निकली

स्वप्निल तिवारी

नदी की लय पे ख़ुद को गा रहा हूँ

स्वप्निल तिवारी

मुँह अँधेरे तेरी यादों से निकलना है मुझे

स्वप्निल तिवारी

मिली है राहत हमें सफ़र से

स्वप्निल तिवारी

मिली है राहत हमें सफ़र से

स्वप्निल तिवारी

समाअतों में बहुत दूर की सदा ले कर

स्वप्निल तिवारी

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