जिस तरह हर गली के लिए कम से कम एक कम-तोल पंसारी, एक घर का शेर कुत्ता, एक लड़ाका सास, एक बद-ज़बान बहू, एक नसीहत करने वाले बुज़ुर्ग, एक फ़ज़ीहत पी जाने वाला रिंद और हवाइज-ए-ज़रूरी से फ़ारिग़ होते हुए बहुत से बच्चों का होना लाज़िमी होता है, उसी तरह किसी न किसी भेस में एक माहिर-ए-ग़ालिबयात का होना भी लाज़िमी होता है और बग़ैर उसके गिर्द-ओ-पेश का जुग़राफ़िया कुछ अधूरा रह जाता है।
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