संपूर्ण
परिचय
ग़ज़ल65
नज़्म10
शेर85
ई-पुस्तक7
टॉप 20 शायरी 20
चित्र शायरी 15
ऑडियो 2
वीडियो18
क़ितआ11
गीत1
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल 65
नज़्म 10
अशआर 85
चराग़ घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का
हवा के पास कोई मस्लहत नहीं होती
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तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है
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दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता
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क़ितआ 11
गीत 1
पुस्तकें 7
चित्र शायरी 15
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आइना हो जाऊँगा उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं मैं गिरा तो मसअला बन कर खड़ा हो जाऊँगा मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा
वीडियो 18
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