aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शीशा"
वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैंतुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामीफिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
मीना-ब-मीना मय-ब-मय जाम-ब-जाम जम-ब-जमनाफ़-पियाले की तिरे याद अजब सही गई
दिल तो चमक सकेगा क्या फिर भी तराश के देख लेंशीशा-गिरान-ए-शहर के हाथ का ये कमाल भी
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चारये शीशा ओ क़दह ओ कूज़ा ओ सुबू क्या है
क्या भला साग़र-ए-सिफ़ाल कि हमनाफ़-प्याले को जाम कर रहे हैं
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्ताररख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे
मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तोशहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया
किसी तरह तो जमे बज़्म मय-कदे वालोनहीं जो बादा-ओ-साग़र तो हाव-हू ही सही
हयात-ए-इश्क़ का इक इक नफ़स जाम-ए-शहादत हैवो जान-ए-नाज़-बरदाराँ कोई आसान लेते हैं
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