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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
मैं इक नंगीन-ए-बूदश हूँ प तुम तो सिर्र-ए-मुनअम हो
तुम्हारा बाप रूहुल-क़ुद्स था तुम इब्न-ए-मरयम हो
जौन एलिया
नज़्म
इक़बाल से हम-कलामी
कल अज़ान-ए-सुब्ह से पहले फ़ज़ा-ए-क़ुद्स में
मैं ने देखा कुछ शनासा सूरतें हैं हम-नशीं
शोरिश काश्मीरी
ग़ज़ल
इस हरीम-ए-क़ुद्स में क्या लफ़्ज़ ओ मअ'नी का गुज़र
फिर भी सब बातें पहुंचती हैं लब-ए-फ़रियाद की
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया
मुर्ग़ान-ए-क़ुद्स के लिए गुल-दाम ले गया
मुनीर शिकोहाबादी
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नज़्म
मिर्ज़ा-'ग़ालिब'
रूह मुतलक़ जज़्ब थी गोया तिरे एहसास में
क़ुद्स के नग़्मे निहाँ थे पर्दा-ए-अन्फ़ास में
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
ग़ज़ल
ख़लवत-ए-क़ुद्स की बे-पर्दा तजल्ली को न पूछ
शौक़-ए-नज़्ज़ारा में सिर्फ़ आँख का पर्दा देखा
औज लखनवी
नज़्म
फ़साना-ए-आदम
ठिठुक गईं जो निगाहें क़रीब हुजला-ए-क़ुद्स
पस-ए-हिजाब-ए-अदब ये सदा सुनी मैं ने
जमील मज़हरी
हास्य
लफ़्ज़ ही में सोज़ था और लफ़्ज़ ही में साज़ था
नग़्मा-ए-शाएर का रूहुल-क़ुद्स हम-आवाज़ था
ज़रीफ़ लखनवी
नज़्म
हुस्न की ज़बान से
छुपी हिजाब-ए-क़ुद्स में है शम-ए-अंजुमन मिरी
सितारे जल के ख़ाक हों जो देख लें फबन मिरी