aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "معاملے"
माहम शाह
born.1997
शायर
जैमिनी सरशार
1904 - 1984
माहम ख़ान
born.1995
शाहिद माहुली
born.1943
बी एम ख़ान माले
born.1952
माहम हया सफ़दर
born.1999
महाबली प्रसाद आजिज़
लेखक
लोर्ड मकाले
1800 - 1859
महमुनी कुनादजी
हमदम प्रेस, मालेगांव
पर्काशक
आर्थर मॉर्ले
उसके सारे जिस्म में मुझे उसकी आँखें बहुत पसंद थीं। ये आँखें बिल्कुल ऐसी ही थीं जैसे अंधेरी रात में मोटर कार की हेडलाइट्स जिनको आदमी सब से पहले देखता है। आप ये न समझिएगा कि वो बहुत ख़ूबसूरत आँखें थीं, हरगिज़ नहीं। मैं ख़ूबसूरती और बदसूरती में तमीज़ कर...
मिर्ज़ा ग़ालिब अपने दोस्त हातिम अली मेहर के नाम एक ख़त में लिखते हैं, “मुग़ल बच्चे भी अजीब होते हैं कि जिस पर मरते हैं उसको मार रखते हैं, मैंने भी अपनी जवानी में एक सितम पेशा डोमनी को मार रखा था।”...
इस बारे में हमसे भी मश्वरा लिया गया। उम्र भर में इससे पहले हमारे किसी मा’मले में हमसे राय तलब न की गयी थी, लेकिन अब तो हालात बहुत मुख़तलिफ थे। अब तो एक ग़ैर-जानिबदार और ईमानदार मुसन्निफ़ या’नी यूनीवर्सिटी हमारी बे-दार मग़ज़ी की तस्दीक़ कर चुकी थी। अब भला...
दिल के मुआ'मले में नतीजे की फ़िक्र क्याआगे है इश्क़ जुर्म-ओ-सज़ा के मक़ाम से
ये मुआ'मले हैं नाज़ुक जो तिरी रज़ा हो तू करकि मुझे तो ख़ुश न आया ये तरिक़-ए-ख़ानक़ाही
माशूक़ की एक सिफ़त उस का फ़रेबी होना भी है। वो हर मआमले में धोखे-बाज़ साबित होता है। वस्ल का वादा करता है लेकिन कभी वफ़ा नहीं करता है। यहाँ माशूक़ के फ़रेब की मुख़्तलिफ़ शक्लों को मौज़ू बनाने वाले कुछ शेरों का इन्तिख़ाब हम पेश कर रहे हैं इन्हें पढ़िये और माशूक़ की उन चालाकियों से लुत्फ़ उठाइये।
रचनाकार की भावुकता एवं संवेदनशीलता या यूँ कह लीजिए कि उसकी चेतना और अपने आस-पास की दुनिया को देखने एवं एहसास करने की कल्पना-शक्ति से ही साहित्य में हँसी-ख़ुशी जैसे भावों की तरह उदासी का भी चित्रण संभव होता है । उर्दू क्लासिकी शायरी में ये उदासी परंपरागत एवं असफल प्रेम के कारण नज़र आती है । अस्ल में रचनाकार अपनी रचना में दुनिया की बे-ढंगी सूरतों को व्यवस्थित करना चाहता है,लेकिन उसको सफलता नहीं मिलती । असफलता का यही एहसास साहित्य और शायरी में उदासी को जन्म देता है । यहाँ उदासी के अलग-अलग भाव को शायरी के माध्यम से आपके समक्ष पेश किया जा रहा है ।
मुआ'मलेمعاملے
affairs
Dehati Mualij
अननोन ऑथर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Yadon Ki Duniya
यूसुफ़ हुसैन ख़ाँ
भारत का इतिहास
उसूल-ए-लुग़त
ऑल इंडिया एजुकेशनल लिटरेरी बुक सोसाइटी रजिस्टर्ड लाहौर
शब्द-कोश
Chun Chunan De Muamale
दुआ अली
शाइरी
Aurt Islami Muashre Mein
सय्यद जलालुद्दीन उमरी
इस्लामियात
Urdu Mahiye Ke Khad-o-Khal
आरिफ़ फ़रहाद
माहिया
Mekaale Ka Nazarya-e-Taleem
एजुकेशन / शिक्षण
Muqaddama-e-Rubai
सय्यद वहीद अशरफ़ कछौछवी
रुबाई तन्क़ीद
औरत इस्लामी मुअाशरे में
Ghazlain Nazmain Mahiye
हैदर क़ुरैशी
नज़्म
ग़ालिब और बनारस
आलोचना
कुछ ख़ुत्बे कुछ मक़ाले
आल-ए-अहमद सुरूर
व्याख्यान
Mahiye
Tanqeedi Muamle
डॉ. ख़ुर्शीद समी
या दिल से तर्क कीजियो दस्तार का ख़यालया उस मुआ'मले में कभी सर न दीजियो
“दाऊ जी कुछ और पूछो।" दाऊ जी ने कहा, "बहुत बे-आबरु होकर तेरे कूचे से हम निकले। इसकी तरकीब-ए-नहवी करो।"...
आप मानें न मानें मगर मैं क़समिया कहता हूँ कि इस बार उसने फिर झूट बोला। इस मर्तबा फिर उसके लहजे ने चुगु़ली खाई और मुझे उससे दिलचस्पी पैदा हो गई। इसलिए कि मैंने अपने दिल में क़सद कर लिया था कि उसे ज़रूर अपने पास बिठाऊंगा और अपना सिगरेट...
दिल के मुआ'मले जो थे उन में से एक ये भी हैइक हवस थी दिल में जो दिल से गुरेज़-पा भी थी
त्रिलोचन को कृपाल के भाई निरंजन पर बहुत ग़ुस्सा आता था। उसने जो कि हर रोज़ अख़्बार पढ़ता था, फ़सादात की तेज़ी-ओ-तुंदी के मुतअल्लिक़ हफ़्ता भर पहले आगाह कर दिया था और साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया था। निरंजन, ये ठेके-वेके अभी रहने दो। हम एक बहुत ही नाज़ुक दौर...
हिंदुओं के मुहल्ले में जो मुसलमान रहते थे भागने लगे। इसी तरह वो हिंदू जो मुसलमानों के मुहल्ले में थे, अपना घर-बार छोड़ के महफ़ूज़ मुक़ामों का रुख़ करने लगे। मगर ये इंतिज़ाम सब के नज़दीक आरिज़ी था, उस वक़्त तक के लिए जब फ़िज़ा फ़सादात के तकद्दुर से पाक...
साजिदा और हामिदा दो बहनें थीं। साजिदा छोटी और हामिदा बड़ी। साजिदा ख़ुश शक्ल थी। उनके माँ-बाप को ये मुश्किल दरपेश थी कि साजिदा के रिश्ते आते मगर हामिदा के मुतअल्लिक़ कोई बात न करता। साजिदा ख़ुश शक्ल थी मगर उसके साथ उसे बनना सँवरना भी आता था।...
ग़ालिब के हालात नाम: मिर्ज़ा का नाम तमाम तज़्किरा नवीसों ने असदुल्लाह ख़ां लिखा है, चूँकि आप ईरानी उन नस्ल थे इसलिए असदुल्लाह और ख़ां के दरमियान बेग का लफ़्ज़ भी बढ़ा दिया जाता है लेकिन नए मुहक़्क़िक़ों ने इस नाम के मुआमले को भी ख़ास तहक़ीक़ात का मुस्तहिक़ समझा...
जोगिंदर सिंह ने फिर अपना अंदेशा ज़ाहिर किया, “मुम्किन है वो हमारी इस दा’वत को ख़ुशामद समझे।” “इसमें ख़ुशामद की क्या बात है और भी तो कई बड़े आदमी आपके पास आते हैं। आप उनको ख़त लिख दीजिए, मेरा ख़याल है वो आपकी दा’वत ज़रूर क़बूल करलेंगे और फिर उनको...
नत्थू भट्टे पर ईंटें बनाने का काम करता था। यही वजह है कि वो अक्सर अपने ख़यालात को कच्ची ईंटें समझता था और किसी पर फ़ौरन ही ज़ाहिर नहीं किया करता था। उसका ये उसूल था कि ख़याल को अच्छी तरह पका कर बाहर निकालना चाहिए ताकि जिस इमारत में...
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