शाहिद माहुली
ग़ज़ल 18
नज़्म 10
अशआर 3
ख़ूँ का सैलाब था जो सर से अभी गुज़रा है
बाम-ओ-दर अब भी सिसकते हैं मगर घर चुप हैं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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