aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "وہسکی"
आसिम वास्ती
शायर
शाैकत वास्ती
1922 - 2009
बद्र वास्ती
नय्यर वास्ती
1901 - 1982
सय्यद आलिम वास्ती
1930 - 1992
काज़िम वासती
सय्यद सबा वासती
सुहैल वास्ती
जमील वासती
1905 - 1981
लेखक
फ़ातेह वास्ती
ज़ाहिद अली वस्ती
सय्यद तय्यब वास्ती
नासिर अली ख़ान बिलग्रामी
वास्ती प्राइवेट लिमिटेड, लाहाैर
पर्काशक
फितरत वास्ती
ये सुनकर सुधा भी ख़ामोश हो गई। इतनी देर ख़ामोशी रही कि मोती को गुमान गुज़रा कि कहीं सुधा अंदर ही अंदर रो रही है।"सुधा।" उसने आहिस्ते से उसका शाना हिलाया।
पदमा ने बेबसी से इस्बात में सर हिलाया।“क्या कहते हो भाई ख़ूफ़ू...?”, दूसरा संतरी उसे ब-ग़ौर देखकर बोला, “ये तो वही है दोशीज़ा फ़लक... कल रात एक गडरिया मुझे बता रहा था...”
भइया उससे नौ बरस बड़े थे मगर उस के सामने लौंडे से लगते थे। वैसे ही सुडौल कसरती बदन वाले, रोज़ वर्ज़िश करते, बड़ी एहतियात से खाना खाते बड़े हिसाब से सिगरेट पीते। यूं ही कभी व्हिस्की बियर चख लेते। उनके चेहरे पर अब लड़कपन था। थे भी तीस इकत्तीस बरस के, मगर चौबीस पच्चीस बरस के ही लगते थे।उफ़ भइया को जीन और स्कर्ट से कैसी नफ़रत थी। उन्हें ये नए फ़ैशन की बे-इस्तंबोल की बदन पर चुपकी हुई क़मीज़ से भी बड़ी घिन आती थी। तंग मोरी की शलवारों से तो वो ऐसे जलते थे कि तौबा ख़ैर, भाभी बे-चारी तो शलवार क़मीज़ के क़ाबिल रह ही नहीं गई थी। वो तो बस ज़्यादा-तर ब्लाउज़ और पेटीकोट पर ड्रेसिंग गाउन चढ़ाए घूमा करती। कोई नई जान पहचान वाला आ जाता तो भी बे-तकल्लुफ़ी से वही अपना नैशनल ड्रेस पहने रहती। कोई पुर-तकल्लुफ़ मेहमान आता तो उमूमन वो अंदर ही बच्चों से सर मारा करती जो कभी बाहर आना पड़ता तो मलगज्जी सी साड़ी लपेट लेती। वो घर हस्तिन थी, बहू थी और चहेती थी, उसे रन्डियों की तरह बन-सँवर कर किसी को लुभाने की क्या ज़रूरत थी।
“मेरे कोट में क्या हो सकता है? विस्की की बोतल थी, वो तो मैंने बाहर ही ख़त्म करके फेंक दी थी लेकिन हो सकता है रह गई हो”“लीजिए आपका कोट ये रहा।”
व्हिस्कीوہسکی
whisky
Salma Wa Akhtar
Dekh Liya Multan
विश्व इतिहास
Tibb-ul-Arab
Waqt Ki Udan
पोस्तो वस्की
महिलाओं द्वारा अनुदित
Satah-e-Aaina
कहता हूँ सच
आत्मकथा
Tibb-e-Yunani Ki Sarguzasht
तिब्ब-ए-यूनानी
Kulliyat-e-Shaukat Wasti
कुल्लियात
Kiran Kiran Andhera
काव्य संग्रह
Tera Ehsan Ghazal Hai
ग़ज़ल
Afsana Ki Haqeeqat
ज़फर वास्ती
Khuld-e-Khayal
अब्बास ताबिश
Aag Ki Saleeb
Bahki Baten
पांच बजे सुबह हम कान सहलाते महफ़िल-ए-समा ख़राशी से लौटे। कुछ मुह्मल कलाम का, कुछ ख़ुद रफ़्तगी-ए-शब का ख़ुमार, हम ऐसे ग़ाफ़िल सोए कि सुबह दस बजे तक सुनाते रहे और बेगम हमारे पलंग के गिर्द मंडलाते हुए बच्चों को समझाती रहीं, “कमबख़्तो! आहिस्ता-आहिस्ता शोर मचाओ, अब्बा सो रहे हैं।“रातभर उस मनहूस मिर्ज़ा की मुसाहबी की है। आज दफ़्तर नहीं जाएँगे। अरी उंबीला की बच्ची! घड़ी-घड़ी दरवाज़ा मत खोल। मख्खियों के साथ उनके मुलाक़ाती भी घुस आएँगे।”
आ गया था एक शायर दोस्त पाकिस्तान सेचाय से ठहरा रहा व्हिस्की पिलाने से गया
सर-ए-शाम ही मलिक गिरधारी लाल मदन के घर आ गया और साथ ही व्हिस्की की एक बोतल भी लेता आया। प्रेम लता ने जल्दी से पापड़ तले, बेसन और प्याज़ के पकौड़े तैयार किए और प्लेटों में सजा कर बीच-बीच में ख़ुद आकर उन्हें पेश करती रही।चौथे पैग पर वो पालक के साग वाली फुलकियाँ प्लेट में सजा कर लाई तो मलिक गिरधारी लाल ने बे-इख़्तियार हो कर उस का हाथ पकड़ लिया और बोला, “प्रेम लता तू भी बैठ जा और आज हमारे साथ व्हिस्की की चुस्की लगा ले। तेरा पति मेरा असिस्टेंट होने जा रहा है।”
फ़ाज़िल प्रोफ़ेसर ता देर उस रूह परवर मंज़र से महज़ूज़ होते रहे बल्कि उसके कुछ लज़ीज़ हिस्से तनावुल भी फ़रमाए।3
इतने में पापा बीच वाले कमरे में चले आए, जहाँ मैं खड़ी थी। मेरे ख़यालों का वो तार टूट गया। पापा आज बड़े थके-थके से नज़र आए थे, कोट जो वो पहन कर दफ़्तर गए थे, कांधे पर पड़ा हुआ था। टोपी कुछ पीछे सरक गई थी। उन्होंने अंदर आ कर ऐसे ही कहा, "बेटा" और फिर टोपी उठा कर अपने गंजे सर को खुजाया। टोपी फिर सर पर रखने के बाद वो बाथरूम की तरफ़ चले गए, जहाँ उन्होंने क़म...
बहुत देर तक वो दोनों सुनसान फ़ासला ख़ामोशी में तय करते रहे। आख़िर उनमें से एक साइकल से उतर कर अपने सर्द हाथ मुँह की भाप से गर्म करने लगा, “सख़्त सर्दी है।”उसके साथी ने ब्रेक लगाई और हँसने लगा, “भाई जान! वो... वो विस्की कहाँ गई?”
बोले, ठीक कहते हो। ज़बान उनके घर की लौंडी है और वो उसके साथ वैसा ही सुलूक करते हैं! आजिज़ हो कर मैंने कहा अच्छा यूँही सही, मगर फ़ानी बदायूनी क्यों ग़ायब हैं? फ़रमाया, हश! वो निरे मुसव्विर-ए-ग़म हैं।
एक ने शायद व्हिस्की पी थीदूसरे ने शैम्पेन की बोतल
इस तरह घर का सारा कूड़ा करकट नज़रों से ओझल रख दिया गया। मय्यत उठने से पहले ही नवाब ज़ादी उठकर चल दीं और साथ-साथ वो दामाद भी। मगर बड़े हस्सास दिल का मालिक है। वो सब कुछ समझता है और उसके दिल पर बर्फ़ के घूँसे हर-दम लगा करते हैं। इसलिए वो जल्द अज़ जल्द इस माहौल में समोने की कोशिश करता रहता है और ख़ुद-फ़रामोशी के लिए शराब पीता है। तब वो सब कुछ भूल जाता है।...
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books