शाैकत वास्ती
ग़ज़ल 60
अशआर 5
बड़े वसूक़ से दुनिया फ़रेब देती रही
बड़े ख़ुलूस से हम ए'तिबार करते रहे
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अजीब बात है दिन भर के एहतिमाम के बा'द
चराग़ एक भी रौशन हुआ न शाम के बा'द
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मुझे तो रंज क़बा-हा-ए-तार-तार का है
ख़िज़ाँ से बढ़ के गुलों पर सितम बहार का है
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