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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मर्सिया
ग़फ़लत का तो दिल चौंक पड़ा ख़ौफ़ से हिल कर
फ़ितने ने किया ख़ूब गले कुफ्र से मिल कर
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
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तंज़-ओ-मज़ाह
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जिस की फ़ुर्क़त ने पलट दी इश्क़ की काया 'फ़िराक़'
आज उस ईसा-नफ़स दम-साज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है