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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
हर मुसलमाँ रग-ए-बातिल के लिए नश्तर था
उस के आईना-ए-हस्ती में अमल जौहर था
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरे हमदम मिरे दोस्त!
गीत नश्तर तो नहीं मरहम-ए-आज़ार सही
तेरे आज़ार का चारा नहीं नश्तर के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
पास रहो
मरहम-ए-मुश्क लिए, नश्तर-ए-अल्मास लिए
बैन करती हुई हँसती हुई, गाती निकले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
जिस दिल को तुम ने लुत्फ़ से अपना बना लिया
उस दिल में इक छुपा हुआ नश्तर ज़रूर था
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जज़्ब-ए-वहशत तिरे क़ुर्बान तिरा क्या कहना
खिंच के रग रग में मिरे नश्तर-ए-फ़स्साद आया
दाग़ देहलवी
नज़्म
जुगनू
नए तसव्वुरों का कर्ब, अल-अमाँ कि हयात
तमाम ज़ख़्म निहाँ है तमाम नश्तर है
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
कहाँ जाओगे
और कुछ देर ठहर जाओ कि फिर नश्तर-ए-सुब्ह
ज़ख़्म की तरह हर इक आँख को बेदार करे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
याद-ए-अलीगढ़
वो शमशाद बिल्डिंग पे इक शोर-ए-महशर
वो मुबहम सी बातें वो पोशीदा नश्तर