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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नश्तर ख़ानक़ाही

1931 - 2006 | भारत

प्रमुख आधुनिक शायर

प्रमुख आधुनिक शायर

नश्तर ख़ानक़ाही

ग़ज़ल 37

अशआर 6

अब तक हमारी उम्र का बचपन नहीं गया

घर से चले थे जेब के पैसे गिरा दिए

दिन निकलना था कि सारे शहर में भगदड़ मची

अनगिनत ख़्वाबों के चेहरे भीड़ में गुम हो गए

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पुर्सिश-ए-हाल से ग़म और बढ़ जाए कहीं

हम ने इस डर से कभी हाल पूछा अपना

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बिछड़ कर उस से सीखा है तसव्वुर को बदन करना

अकेले में उसे छूना अकेले में सुख़न करना

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हर बार नया ले के जो फ़ित्ना नहीं आया

इस उम्र में ऐसा कोई लम्हा नहीं आया

पुस्तकें 15

ऑडियो 10

अभी तक जब हमें जीना न आया

कभी तो मुल्तवी ज़िक्र-ए-जहाँ-गर्दां भी होना था

कशिश तो अब भी ग़ज़ब की है नाज़नीनों में

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