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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
गुमाँ ये है तुम्हारी भी रसाई ना-रसाई हो
वो आई हो तुम्हारे पास लेकिन आ न पाई हो
जौन एलिया
ग़ज़ल
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ार-ज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ए'तिराफ़
अब मिरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो
मैं ने माना कि तुम इक पैकर-ए-रानाई हो
असरार-उल-हक़ मजाज़
मर्सिया
ये गौहर-ए-अब्बास हैं पाक उन की ये बुनियाद
अब्बास-ओ-नजफ़ एक हैं गिनिए अगर एदाद