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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
रेशम ओ अतलस ओ कमख़ाब में बुनवाए हुए
जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये बात समझ में आई नहीं
बाजी के मियाँ क्या बाजा हैं
वो हँस हँस कर ये कहने लगीं
अहमद हातिब सिद्दीक़ी
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ग़ज़ल
सुब्ह-ए-काज़िब की हवा में दर्द था कितना 'मुनीर'
रेल की सीटी बजी तो दिल लहू से भर गया
मुनीर नियाज़ी
शेर
सुब्ह-ए-काज़िब की हवा में दर्द था कितना 'मुनीर'
रेल की सीटी बजी तो दिल लहू से भर गया
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
होली
कुछ तबले खटके ताल बजे कुछ ढोलक और मुर्दंग बजी
कुछ झड़पें बीन रबाबों की कुछ सारंगी और चंग बजी
नज़ीर अकबराबादी
रेख़्ती
बेगमा मैं जो बड़ी हूँ तो भला तुझ को क्या
पहने पोशाक ज़री हूँ तो भला तुझ को क्या