aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "chaaraagar"
चराग़ शर्मा
born.1998
शायर
चराग़ हसन हसरत
1904 - 1955
लेखक
आयुष चराग़
born.1991
चराग़ बरेलवी
born.1988
मौलवी चराग़ अली
1844/1846 - 1895
नसीरुद्दीन चराग़ देहली
died.1356
मोहम्मद अली चराग
दफ़्तर चराग़-ए-राह, कराची
पर्काशक
ग़ुलाम क़ादिर
निपा चराग़ी
चराग़ अली ख़ाँ
मोहन चराग़ी
अबू मोहम्मद चराग़ दीन
दफ़्तर माहनामा चराग़, हैदराबाद
मतबा चिराग़-ए-हिदायत, लखनऊ
दाग़-ए-दिल गर नज़र नहीं आताबू भी ऐ चारा-गर नहीं आती
मेरे दाग़-ए-दिल से है रौशनी इसी रौशनी से है ज़िंदगीमुझे डर है ऐ मिरे चारा-गर ये चराग़ तू ही बुझा न दे
अब न हम पर चलेगा तुम्हारा फ़ुसूँचारागर दर्दमंदों के बनते हो क्यूँ
आप थे जिस के चारा-गर वो जवाँसख़्त बीमार है दुआ कीजे
मिरे चारा-गर को नवेद हो सफ़-ए-दुश्मनाँ को ख़बर करोजो वो क़र्ज़ रखते थे जान पर वो हिसाब आज चुका दिया
रौशनी ज़िन्दगी की अलामत है और चिराग़ रौशनी की। चिराग, दुनिया में जो कुछ अच्छा और सकारात्मक है उसके प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल होता रहा है। उर्दू शायरों ने भी अलग-अलग नामों से और मुख़्तलिफ़ लफ़्ज़ों और आलामात-ओ-तश्बीहात के सहारे कायनात के रौशन पहलू को दिखाने की कोशिश की है। चिराग़ और हवा के रिश्ते ने उम्मीद और नाउम्मीदी, रौशनी और अंधेरे की एक दिलचस्प तारीख़ तैयार की है जिसे हम चिराग़ शायरी के तहत यहाँ पेश कर रहे हैं।
क्लासीकी शायरी में मौजूद इश्क़ की कहानी में जो चंद बुनियादी किरदार हैं उन में एक चारागर भी है। यह चारागर कभी महबूब होता है, कभी मसीहा तो कभी वह सीधा-सादा इन्सान जो इश्क़ के मरीज़ का इलाज भी अपने आ’म नुस्ख़ों और अन्दाज़ से शानासाई के लिए पेश है चारागर शायरी से यह इन्तिख़ाबः
चरागरچَراگَر
चरनेवाला।
Charagar
बुशरा रहमान
नॉवेल / उपन्यास
Charagh Tale
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
लेख
Charaghon ka Dhuan
इन्तिज़ार हुसैन
Charagh-e-Dair
मिर्ज़ा ग़ालिब
शायरी
Charag Tale
गद्य/नस्र
Ye Charagh Hai To Jala Rahe
सलीम कौसर
काव्य संग्रह
Akabireen-e-Tahreek-e-Pakistan
Charagh-e-Neem Shab
सलीम अहमद
Charagh-e-Sukhan
मिर्ज़ा यास अजीमाबादी
शायरी तन्क़ीद
Masnawi Charagh-e-Dair
मसनवी
Chalis Charag Ishq Ke
एलिफ शफक
Charagh Hasan Hasrat
तय्यब मुनीर
शोध
नए और पुराने चराग़
आल-ए-अहमद सुरूर
आलोचना
चारा-गर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-'फ़राज़'जुज़ तिरे और कोई ज़ख़्म न जाने मेरे
मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर तिरा क्या भरोसा है चारागरये तिरी नवाज़िश-ए-मुख़्तसर मेरा दर्द और बढ़ा न दे
अब के न इंतिज़ार करें चारागर कि हमअब के गए तो कू-ए-सितमगर के हो गए
वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहींमिरा इलाज मिरे चारा-गर के पास नहीं
चारा-गर की नज़र बताती हैहाल अच्छा नहीं है आज मिरा
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँचारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
किसी ने ग़म तो किसी ने मिज़ाज-ए-ग़म बख़्शासब अपनी अपनी जगह चारागर हमारे हुए
नींद का साथीथकन का चारा-गर
ये तीर दिल में मगर बे-सबब नहीं उतराकोई तो हर्फ़ लब-ए-चारागर से निकला था
बहुत आए हमदम ओ चारा-गर जो नुमूद-ओ-नाम के हो गएजो ज़वाल-ए-ग़म का भी ग़म करे वो ख़ुश-आश्ना कोई और है
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