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ग़ज़ल
दियत इस क़ातिल-ए-बे-रहम से क्या लीजिएगा
अपनी ही आँखों से अब ख़ून बहा लीजिएगा
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
देख ओ क़ातिल-ए-बे-रहम गरेबाँ मेरा
बोसे लेता है गुलू के लब-ए-ख़ंजर के एवज़
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
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ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है
इधर बे-सब्र-ओ-बे-तसकीन-ओ-बे-ताक़त मिरा दिल है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
है है तुझे किस ज़ालिम-ए-बे-रहम ने रौंदा
हालत जो तिरी सब्ज़ा-ए-तुर्बत नहीं अच्छी
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
हज़रत-ए-दिल इक बुत-ए-बे-रहम पर मफ़्तूँ हुए
बैठे-बिठलाए शगूफ़ा और ये पैदा किया