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नज़्म
हिण्डोला
जवाहरों की चटानें सी कुछ पिघलती हुईं
शजर हजर की वो कुछ सोचती हुई दुनिया
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
किताबों में धरा है क्या बहुत लिख लिख के धो डालीं
हमारे दिल पे नक़्श-ए-कल-हजर है तेरा फ़रमाना
बहादुर शाह ज़फ़र
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