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ग़ज़ल
गूँज पर ज़ंजीर की इक रक़्स बिस्मिल ने किया
ज़ुल्म की वहशी फ़ज़ा में नग़्मगी अच्छी लगी
रज़िया सुबहान
ग़ज़ल
आशियाँ में मुंतज़िर बच्चों का कर्ब-अफ़ज़ा ख़याल
रिश्ता बरपा ताएरों का रक़्स-ए-बिस्मिल और शाम
सय्यद नसीर शाह
ग़ज़ल
न जाने आख़िरी हिचकी में कैसा दर्द पिन्हाँ था
परेशाँ हो गए हैं रक़्स-ए-बिस्मिल देखने वाले
नूर इंदौरी
ग़ज़ल
रक़्स-ए-बिस्मिल का तमाशा तो किया होता हुज़ूर
कर के बिस्मिल हो गए किस वास्ते बिस्मिल से दूर
हैदर हुसैन फ़िज़ा लखनवी
ग़ज़ल
आप शरमा गए क्यूँ देख के रक़्स-ए-बिस्मिल
क्या कहीं तीर-ए-नज़र चल के ख़ता करते हैं
पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़
ग़ज़ल
रक़्स-ए-बिस्मिल के मुक़द्दर में है दश्त-ओ-सहरा
और मुजरे सर-ए-बाज़ार हुआ करते हैं
नासिर मिस्बाही
ग़ज़ल
किसी दिन देख लो आलम मिरी बेताबी-ए-दिल का
तमाशा देखना मंज़ूर है गर रक़्स-ए-बिस्मिल का
मुंशी शिव परशाद वहबी
ग़ज़ल
रक़्स-ए-बिस्मिल का तमाशा मुझे दिखला कोई दम
दस्त ओ पा मार के दम तू तह-ए-शमशीर न तोड़