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ग़ज़ल
जो शरफ़ हम को मिला कूचा-ए-जानाँ से 'फ़राज़'
सू-ए-मक़्तल भी गए हैं उसी पिंदार के साथ
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
खोल के क्या बयाँ करूँ सिर्र-ए-मक़ाम-ए-मर्ग ओ इश्क़
इश्क़ है मर्ग-ए-बा-शरफ़ मर्ग हयात-ए-बे-शरफ़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ऐ 'शरफ़' कौन मिरे दिल के मुक़ाबिल होगा
इक यही सारी ख़ुदाई में है मर्दाना-ए-इश्क़
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
हुस्न और उस पे हुस्न-ए-ज़न रह गई बुल-हवस की शर्म
अपने पे ए'तिमाद है ग़ैर को आज़माए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बादा फिर बादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ 'क़तील'
शर्त ये है कोई बाँहों में सँभाले मुझ को
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
मैं ब-सद-ब-सद-फ़ख़्रिया ज़ुहहाद से कहता हूँ 'मजाज़'
मुझ को हासिल, शर्फ़-ए-बैअत-ए-ख़य्याम अभी