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ग़ज़ल
दियत इस क़ातिल-ए-बे-रहम से क्या लीजिएगा
अपनी ही आँखों से अब ख़ून बहा लीजिएगा
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
सामने इक बे-रहम हक़ीक़त नंगी हो कर नाचती है
उस की आँखों से अब मेरी मौत की ख़्वाहिश झाँकती है
शबनम शकील
ग़ज़ल
उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है
इधर बे-सब्र-ओ-बे-तसकीन-ओ-बे-ताक़त मिरा दिल है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं
किस क़दर बे-रूइयाँ देखीं प मुँह मोड़ा नहीं
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
जो उस बे-रहम पर अपना दिल-ए-ख़ाना-ख़राब आया
गए सब्र-ओ-तहम्मुल होश-ओ-ताक़त इज़्तिराब आया
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
पीरी में दिल दिया बुत-ए-बे-रहम यार को
मंज़िल क़रीब थी कि मुसाफ़िर बहक गया
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
है है तुझे किस ज़ालिम-ए-बे-रहम ने रौंदा
हालत जो तिरी सब्ज़ा-ए-तुर्बत नहीं अच्छी
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
हज़रत-ए-दिल इक बुत-ए-बे-रहम पर मफ़्तूँ हुए
बैठे-बिठलाए शगूफ़ा और ये पैदा किया