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ग़ज़ल
दम-ए-तौफ़ किरमक-ए-शम्अ ने ये कहा कि वो असर-ए-कुहन
न तिरी हिकायत-ए-सोज़ में न मिरी हदीस-ए-गुदाज़ में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ग़ौर से देखते हैं तौफ़ को आहु-ए-हरम
क्या कहें उस के सग-ए-कूचा के क़ुर्बां होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
दिल फ़क़्र की दौलत से मिरा इतना ग़नी है
दुनिया के ज़र-ओ-माल पे मैं तुफ़ नहीं करता
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
हम मोतकिफ़-ए-ख़ल्वत-ए-बुत-ख़ाना हैं ऐ शैख़
जाता है तो जा तू पए-तौफ़-ए-हरम अच्छा
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
दिखाती है जो ये दुनिया वो बैठा देखता हूँ मैं
है तुफ़ मुझ पर तमाशा-बीन हो कर रह गया हूँ मैं
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
मोहब्बत है रमी शक पर मोहब्बत तौफ़-ए-महबूबी
सफ़ा मर्वा ने समझाया मोहब्बत हज्ज-ए-अकबर है
शहज़ाद क़ैस
ग़ज़ल
उन मुग़्बचों के कूचे ही से मैं क्या सलाम
क्या मुझ को तौफ़-ए-काबा से में रिंद-ए-दर्द-नोश
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तिरे कूचे के शौक़-ए-तौफ़ में जैसे बगूला था
बयाबाँ मैं ग़ुबार 'मीर' की हम ने ज़ियारत की
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मैं तो समझा था बुझावेंगे कुछ आँसू तुफ़-ए-दिल
ये तो और आग को भड़का के चले आते हैं