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ग़ज़ल
आप का वा'दा कल भी था आज है वा'दा दूसरा
क़ौल-ओ-क़रार आप का जब न ग़लत न अब ग़लत
मोहम्मद विलायतुल्लाह
ग़ज़ल
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
अक़्ल कहती है कि वो बे-मेहर किस का आश्ना
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कमाल सालारपूरी
ग़ज़ल
तेरा ख़याल हिज्र में इस का अनीस है
होता है तेरी याद में 'शैदा' का ग़म ग़लत
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
ग़ज़ल
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न ब'अद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया
ज़ाहिरन काग़ज़ तिरे ख़त का गलत-बर-दार है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
खुला है ग़ुंचा-ए-दिल हर ग़रीब-ओ-बे-कस का
नसीम कू-ए-मदीना जहाँ जहाँ गुज़री