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ग़ज़ल
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
ये फ़ैज़ अहल-ए-दिल की दुआओं का है 'निशात'
हल्का सा जो अज़ाब कहीं है कहीं नहीं
मर्दान अली खां निशात
ग़ज़ल
एक गुमाँ का हाल है और फ़क़त गुमाँ में है
किस ने अज़ाब-ए-जाँ सहा कौन अज़ाब-ए-जाँ में है