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ग़ज़ल
मुमकिन है अब वक़्त की चादर पर मैं करूँ रफ़ू का काम
जूते मैं ने गाँठ लिए हैं गुदड़ी मैं ने सी ली है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
ना उन की गुदड़ी में ताँबा पैसा ना मनके मालाएँ
प्रेम का कासा दर्द की भिक्षा गीत ग़ज़ल दो है कविताएँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
सुना है कल रात मर गया वो बरहना दरवेश झोंपड़ी में
फ़ना के बिस्तर पे जो बक़ा की हरीस गुदड़ी बिछा रहा था
जब्बार वासिफ़
ग़ज़ल
दुख़्तर-ए-रज़ की मज़म्मत का इरादा तो करे
खींच लूंगा अभी गुद्दी से ज़बान-ए-वाइ'ज़
मीर कल्लू अर्श
ग़ज़ल
हम तो जहाँ के सुलतानों से बेहतर उस को जाने हैं
जिस ने रूखी सूखी खा कर गुदड़ी में आराम किया
जली अमरोहवी
ग़ज़ल
गुलज़ारों में बसने वाले भक्कर देस भी देख
थल का रेगिस्तान भी है गुदड़ी में ला'ल लिए
ख़लील रामपुरी
ग़ज़ल
गुदड़ी में फिर लपेट के लाया है कोई ला'ल
क्यों बे-हिजाब हो गया सौदा हिजाब का