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ग़ज़ल
मुमकिन है अब वक़्त की चादर पर मैं करूँ रफ़ू का काम
जूते मैं ने गाँठ लिए हैं गुदड़ी मैं ने सी ली है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
ख़ुद-ब-ख़ुद नींद सी आँखों में घुली जाती है
महकी महकी है शब-ए-ग़म तिरे बालों की तरह