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ग़ज़ल
मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त का जागा हूँ फ़रिश्तो अब तो सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
पूछ न उन निगाहों की तुर्फ़ा करिश्मा-साज़ियाँ
फ़ित्ने सुला के रह गईं फ़ित्ने जगा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
मिरी बंद पलकों पे टूट कर कोई फूल रात बिखर गया
मुझे सिसकियों ने जगा दिया मिरी कच्ची नींद उचट गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
कह के सोया हूँ ये अपने इज़्तिराब-ए-शौक़ से
जब वो आएँ क़ब्र पर फ़ौरन जगा देना मुझे