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ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इन परी-ज़ादों से लेंगे ख़ुल्द में हम इंतिक़ाम
क़ुदरत-ए-हक़ से यही हूरें अगर वाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शैख़ और बहिश्त कितने तअ'ज्जुब की बात है
या-रब ये ज़ुल्म ख़ुल्द की आब-ओ-हवा के साथ
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
इशरत-ए-ख़ुल्द के लिए ज़ाहिद-ए-कज-नज़र झुके
मशरब-ए-इश्क़ में तो ये जुर्म है बंदगी नहीं
एहसान दानिश
ग़ज़ल
गुलशन अजब बहार के हर क़स्र रश्क-ए-ख़ुल्द
और गोमती ग़ज़ब की है दरिया-ए-लखनऊ