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ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार की
ज़िक्र दुश्मन का वो बातों में उड़ाना याद है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
आख़िर-ए-शब के हम-सफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुए
रह गई किस जगह सबा सुब्ह किधर निकल गई