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ग़ज़ल
क्या मजाल अपनी जो कुछ कह सकें हम तुझ से और
तुझ को भर कर नज़र ऐ शोख़ पिसर देखें तो
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
सब ख़िराज-ए-मिस्र दे कर था ज़ुलेख़ा को ये सोच
मोल यूसुफ़ से पिसर का कारवाँ ने क्या कहा
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
जो दिखते थे बजा रह पर वही गुमराह थे नादाँ
जो भटके भूले लगते थे वही पिसर-ए-ख़िज़र निकले