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ग़ज़ल
हम मुज़न्निबों में सिर्फ़ करम से है गुफ़्तुगू
मज़कूर ज़िक्र याँ नहीं सौम-ओ-सलात का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
हम तो मर जाएँ जो इक दम ये करें सौम-ओ-सलात
क्यूँ कि जीते हैं वो जो आप के मिक़्ताद हैं शैख़
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
तिरे करम से बड़ा था कुछ ए'तिक़ाद मेरा
इसी लिए मुझ को फ़िक्र-ए-सोम-ओ-सलात कम थी
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
मस्तों की महफ़िलों में किसी दिन जो आ फँसे
ज़ाहिद के अह्द-ए-सौम का पाया शिकस्त हो
सुलेमान शिकोह गर्डर फ़ना
ग़ज़ल
रख़नों से दीवार-ए-चमन के मुँह को ले है छुपा या'नी
इन सूराख़ों के टुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है