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ग़ज़ल
ज़हे वो दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा-तर में रहे
ख़ोशा वो उम्र जो ख़्वाबों ही में बहल जाए
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
ज़हे करिश्मा कि यूँ दे रक्खा है हम को फ़रेब
कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है क्या कहिए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ज़हे इज़्ज़त जो हो इस बज़्म में मज़कूर ऐ वाइज़
बला से गर गुनहगारों में अपना नाम आएगा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अभी तो आया ही था वहाँ से कभी न जाने का अहद कर के
मगर मोहब्बत ज़हे मोहब्बत अभी वहीं से फिर आ रहा हूँ
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
ज़हे सोज़-ए-ग़म-ए-आदम ख़ुशा साज़-ए-दिल-ए-आदम
इसी इक शम्अ' की लौ ने जहान-ए-तीरगी बदला
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ज़हे तक़दीर किस आराम ओ राहत से वो बिस्मिल है
कि जिस के सर का तकिया देर से ज़ानू-ए-क़ातिल है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
शरह-ए-हंगामा-ए-हस्ती है ज़हे मौसम-ए-गुल
रह-बर-ए-क़तरा-बा-दरिया है ख़ोशा मौज-ए-शराब
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
एक इक लम्हा गुज़ारा जा रहा है होश में
ऐ ज़हे-क़िस्मत जो हैं तूफ़ान की आग़ोश में