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नज़्म
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
उरूक़-मुर्दा-ए-मशरिक़ में ख़ून-ए-ज़िंदगी दौड़ा
समझ सकते नहीं इस राज़ को सीना ओ फ़ाराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ून-ए-दिल ओ जिगर से है मेरी नवा की परवरिश
है रग-ए-साज़ में रवाँ साहिब-ए-साज़ का लहू!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब कहाँ वो शौक़-ए-रह-पैमाई-ए-सहरा-ए-इल्म
तेरे दम से था हमारे सर में भी सौदा-ए-इल्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कमर बाँधे हुए दिन रात चलने पर हैं आमादा
दिमाग़ अफ़्कार से और दिल वुफ़ूर-ए-शौक़ से मलूल
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
मेरी नज़रों को ख़ुदा-रा दावत-ए-काविश न दे
जगमगाते मोतियों के हार को जुम्बिश न दे
माहिर-उल क़ादरी
नज़्म
ख़ुदा-रा इस निज़ा-ए-बाहमी को ख़त्म फ़रमा दो
ज़रा सोचो कि तुम पर किस क़दर इल्ज़ाम आता है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
दर फ़स्ल-ए-गुल कि गुलशन नक़्श-ओ-निगार बंदो
'नाज़िर' ख़याल-ए-ख़ुद-रा और बज़्म-ए-यार बंदो
ख़ुशी मोहम्मद नाज़िर
नज़्म
जिस ने सीखा ही नहीं अब्र-ए-बहारी का ख़िराम
रात तारीक है और मैं हूँ वो इक शमबू-ए-हज़ीं
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
कहा ज़ईफ़ ने मैं सुन सका न नाम तिरा
ख़ुदा-रा फिर से बता मुझ को तेरा नाम है क्या
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
नज़्म
क्लीनर से यही कहता है शोफ़र हो के बेचारा
''कि कस नकशूद-ओ-नकशायद ब-हिकमत ईं मुअम्मा रा''