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नज़्म
हैं जितने अक़ारिब वो अक़ारिब से हैं बद-तर
अहबाब हैं वो ख़ुद-ग़रज़-ओ-ज़ूद-फ़रामोश
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
शाहिद जमील
नज़्म
गिरफ़्तार-ए-क़लक़ होंगे मुलाज़िम भी मुसाहिब भी
सर-ए-बालीं खड़े होंगे अहिब्बा भी अक़ारिब भी
बिसमिल देहलवी
नज़्म
चिड़ियों की तरह दाने पे गिरता है किस लिए
पर्वाज़ रख बुलंद कि तू बन सके उक़ाब