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नज़्म
अक़्ल ओ दिल ओ निगाह का मुर्शिद-ए-अव्वलीं है इश्क़
इश्क़ न हो तो शर-ओ-दीं बुतकद-ए-तसव्वुरात!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये किस तरह याद आ रही हो ये ख़्वाब कैसा दिखा रही हो
कि जैसे सच-मुच निगाह के सामने खड़ी मुस्कुरा रही हो
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
अपने माज़ी के तसव्वुर से हिरासाँ हूँ मैं
अपने गुज़रे हुए अय्याम से नफ़रत है मुझे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
हासिल-ए-इश्क़-ए-मुस्तफ़ा उन से निज़ाम-ए-काएनात
उन के बग़ैर शरअ'-ओ-दीन बुत-कदा-ए-तसव्वुरात
मीर यासीन अली ख़ाँ
नज़्म
ख़्वाब अब हुस्न-ए-तसव्वुर के उफ़ुक़ से हैं परे
दिल के इक जज़्बा-ए-मासूम ने देखे थे जो ख़्वाब
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
हो तसव्वुर इश्क़ का और हो स्याही रात की
उम्र नाज़ुक मोम सी हो याद हो इस बात की