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नज़्म
ये किताब ओ ख़्वाब के दरमियान जो मंज़िलें हैं मैं चाहता था
तुम्हारे साथ बसर करूँ
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
निगाह-ए-यार तुझ से अपनी मंज़िलें मैं पाऊँगा
तुझे जो भूल जाऊँगा तो राह भूल जाऊँगा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मंज़िलें गुम और इतने रहनुमाओं का हुजूम
ए'तिक़ाद-ए-ख़ाम और इतने ख़ुदाओं का हुजूम