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नज़्म
नर्गिस-ए-नाज़ में वो नींद का हल्का सा ख़ुमार
वो मिरे नग़्म-ए-शीरीं का असर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हुब्ब-ए-वतन समाए आँखों में नूर हो कर
सर में ख़ुमार हो कर दिल में सुरूर हो कर
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
फ़ज़ा में बुझ गए उड़ उड़ के जुगनुओं के शरार
कुछ और तारों की आँखों का बढ़ चला है ख़ुमार
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जाने कब पी थी अभी तक है मय-ए-ग़म का ख़ुमार
धुँदला धुँदला नज़र आता है जहान-ए-बेदार