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नज़्म
जिस्म पर क़ैद है जज़्बात पे ज़ंजीरें हैं
फ़िक्र महबूस है गुफ़्तार पे ताज़ीरें हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़लिश-ए-दिल से उसे दस्त-ओ-गरेबाँ न करूँ
उस के जज़्बात को मैं शो'ला-ब-दामाँ न करूँ
नून मीम राशिद
नज़्म
चाँदनी रात में बुझता हुआ पलकों का सितार
फ़र्त-ए-जज़्बात से महकी हुई साँसों की क़तार
वसीम बरेलवी
नज़्म
तेरे बस में थी अगर मशअ'ल-ए-जज़्बात की लौ
तेरे रुख़्सार में गुलज़ार न भड़का होता
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
अरमानों का क़ातिल है उम्मीदों का रहज़न है
जज़्बात का मक़्तल है जज़्बात का मदफ़न है
अख़्तर शीरानी
नज़्म
दबेगी कब तलक आवाज़-ए-आदम हम भी देखेंगे
रुकेंगे कब तलक जज़्बात-ए-बरहम हम भी देखेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मैं अक्सर उन के तसव्वुर में डूब जाता था
वफ़ूर-ए-जज़्बा से हो जाती थी मिज़ा पुर-नम
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
वो जब हंगाम-ए-रुख़्सत देखती थी मुझ को मुड़ मुड़ कर
तो ख़ुद फ़ितरत के दिल में महशर-ए-जज़्बात होता था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मिरे जज़्बात की देवी मिरे अशआर की मलका
वो मलका जो ब-रंग-ए-अज़्मत-ए-शाहाना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
तिरे दामन से हम ने क़ीमती लम्हात पाए हैं
ख़ुलूस-अाे-उनसियत के बे-बहा जज़्बात पाए हैं