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नज़्म
ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इक आदमी हैं जिन के ये कुछ ज़र्क़-बर्क़ हैं
रूपे के जिन के पाँव हैं सोने के फ़र्क़ हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ख़ुर्दनी चीज़ों के चेहरों से टपकता है लहू
रूपये का रंग फ़क़ है अशरफ़ी है ज़र्द-रू
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ज़-फ़र्क़ ता-क़दम तमाम चेहरा जिस्म-ए-नाज़नीं
लतीफ़ जगमगाहटों का कारवाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
आसमाँ पर ख़ाक होगी, फ़र्क़ पर रंग-ए-शफ़क़
और इस रंग-ए-शफ़क़ में बा-हज़ाराँ आब-ओ-ताब!
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
चाहती हूँ मिरे उश्शाक़ में कुछ फ़र्क़ न हो
मुफ़्त में कश्ती-ए-एहसास-ए-वफ़ा ग़र्क़ न हो
शकील बदायूनी
नज़्म
गीताञ्जलि राय
नज़्म
क्यूँ तबीअ'त को न हो बे-ख़ुदी-ए-शौक़ पे नाज़
हज़रत-ए-अब्र के क़दमों पे है ये फ़र्क़-ए-नियाज़