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नज़्म
फ़ज़ा में दर्द-आगीं गीत लहराए तो आ जाना
सुकूत-ए-शब में कोई आह थर्राए तो आ जाना
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
देखना जल्वा-ए-जानाँ का असर आज की रात
फूल ही फूल हैं ता-हद्द-ए-नज़र आज की रात
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
नज़्म
वसीअ जंगल है एक जानिब पहाड़ों का सिलसिला चला है
शाम आहिस्तगी से पेड़ों पे कुहनियाँ टेकती है