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नज़्म
हाँ देखा कल हम ने उस को देखने का जिसे अरमाँ था
वो जो अपने शहर से आगे क़र्या-ए-बाग़-ओ-बहाराँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दिल की न पूछो क्या कुछ चाहे दिल का तो फैला है दामन
गीत से गाल ग़ज़ल सी आँखें साअद-ए-सीमीं बर्ग-ए-दहन
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तू तो बाग़-ए-ख़ुल्द में मेहमान-ए-यज़्दाँ हो गई
और यहाँ पर मेरी दुनिया पल में वीराँ हो गई
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
मलाल ऐसा भी क्या जो ज़ेहन को हर ख़्वाब से महरूम कर दे
जमाल-ए-बाग़-ए-आइंदा के हर इम्कान को मादूम कर दे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
ब-ज़ाहिर चंद फ़िरऔ'नों का दामन भर दिया इस ने
मगर गुल-बाग़-ए-आलम को जहन्नम कर दिया इस ने
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तेरे ही नग़्मे से कैफ़-ओ-इम्बिसात-ए-ज़िंदगी
तेरी सौत-ए-सरमदी बाग़-ए-तसव्वुफ़ की बहार