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नज़्म
अहल-ए-क़फ़स की सुब्ह-ए-चमन में खुलेगी आँख
बाद-ए-सबा से वअदा-ओ-पैमाँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क़ुफ़्ल-ए-बाब-ए-शौक़ थीं माहौल की ख़ामोशियाँ
दफ़अतन काफ़िर पपीहा बोल उठा अब क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
असीरान-ए-क़फ़स से काश ये सय्याद कह देता
रहो आज़ाद हो कर हम तुम्हें आज़ाद करते हैं
राम प्रशाद बिस्मिल
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी बाब-ए-आतिश-ज़दा पर खड़ा मुस्कुराने लगा है
कहीं हिज्र की साअतें गिनते गिनते मुझे नींद आई हुई है
अहमद ज़फ़र
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
वक़्त के बाब-ए-नदामत में निहाँ तहरीरें
उन को पढ़ लेते तो शायद न यूँ हैराँ होते