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नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आशोब-ए-जहाँ की देवी से यूँ आँख चुराऊँगा कब तक
जिस फ़र्ज़ को पूरा करना है वो फ़र्ज़ भुलाऊँगा कब तक
आमिर उस्मानी
नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
क्या कहा इंसाफ़ है इंसाँ का फ़र्ज़-ए-अव्वलीं
क्या फ़साद-ओ-ज़ुल्म का अब तुम में कस बाक़ी नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जहाँ में हर तरफ़ है इल्म ही की गर्म-बाज़ारी
ज़मीं से आसमाँ तक बस इसी का फ़ैज़ है जारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
ऐ क़ौम वतन के परवानो लो अपने फ़र्ज़ को पहचानो
अब जेल से ये पैग़ाम हमें भिजवा दिया गाँधी बाबा ने