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नज़्म
देख आए हम भी दो दिन रह के देहली की बहार
हुक्म-ए-हाकिम से हुआ था इजतिमा-ए-इंतिशार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
इक ख़्वाब की आहट से यूँ गूँज उठीं गलियाँ
अम्बर पे खिले तारे बाग़ों में हँसें कलियाँ
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
एक मिस सीमीं बदन से कर लिया लंदन में अक़्द
इस ख़ता पर सुन रहा हूँ ताना-हा-ए-दिल-ख़राश
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
ख़ुदा अलीगढ़ के मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
भरे हुए हैं रईस-ज़ादे अमीर-ज़ादे शरीफ़-ज़ादे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पहलू-ए-शाह में ये दुख़्तर-ए-जम्हूर की क़ब्र
कितने गुम-गश्ता फ़सानों का पता देती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मिरी साँसों को गीत और आत्मा को साज़ देती है
ये दीवाली है सब को जीने का अंदाज़ देती है
नज़ीर बनारसी
नज़्म
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
जब दिन ढल जाता है, सूरज धरती की ओट में हो जाता है
और भिड़ों के छत्ते जैसी भिन-भिन