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नज़्म
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िल
इक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कह रही है मेरी ख़ामोशी ही अफ़्साना मिरा
कुंज-ए-ख़ल्वत ख़ाना-ए-क़ुदरत है काशाना मिरा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जमी हुई है अभी महफ़िल-ए-शबाना-ए-नाज़
अभी ज़बान-ए-मोहब्बत पे है फ़साना-ए-नाज़
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न दोस्तो बे-फ़ैज़ हुई
गुल करो शम'एँ चराग़ों की लवें ज़ख़्मी करो
जावेद अकरम फ़ारूक़ी
नज़्म
गंदुम-ए-ख़ल्वत-नशीं बाज़ार में लाया गया
और ज़ख़ीरा-बाज़ से चक्की में पिसवाया गया
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
वो मेरा यूसुफ़-ए-सानी वो शम-ए-महफ़िल-ए-इश्क़
हुई है जिस की उख़ुव्वत क़रार-ए-जाँ मुझ को
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो राज़-दार-ए-महफ़िल-ए-याराँ नहीं रहा
वो ग़म-गुसार-ए-बज़्म-ए-अरीफ़ाँ चला गया