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नज़्म
नहीं मैं महरम-ए-राज़-ए-दरून-ए-मय-कदा लेकिन
यही महसूस होता है कि हर शय कुछ दिगर-गूँ है
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
किस की नज़र पड़ेगी अब 'इस्याँ पे लुत्फ़ की
वो महरम-ए-नज़ाकत-ए-इस्याँ चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
महरम-ए-सिर्र-ए-दरूँ है किस क़दर तेरी निगाह
गुल के पैराहन में आती है तुझे बू-ए-तुराब
बिसमिल देहलवी
नज़्म
इक मुकम्मल ज़िंदगी है शाइ'र-ए-शीरीं-बयाँ
महरम-ए-राज़-ए-फ़ना है और बक़ा का तर्जुमाँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
तू है ना-महरम-ए-ताब-ओ-तप-ए-बातिन वर्ना
तेरी आहों से पिघल जाए सितारों का वुजूद
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
वारिस-ए-असरार-ए-फ़ितरत फ़ातेह-ए-उम्मीद-ओ-बीम
महरम-ए-आसार-ए-बाराँ वाक़िफ़-ए-तब्अ-ए-नसीम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
महरम-ए-दर्द-ओ-मसर्रत राज़-दार-ए-सुब्ह-ओ-शाम
महफ़िल-ए-फ़ितरत की ख़मोशी है तुझ से हम-कलाम
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़िंदगी में चाँद से बढ़ कर हसीं मुम्ताज़ थी
शह-जहाँ की हम-नशीं थी हमदम-ओ-हमराज़ थी