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नज़्म
जो है इक नंग-ए-हस्ती उस को तुम क्या जान भी लोगे
अगर तुम देख लो मुझ को तो क्या पहचान भी लोगे
जौन एलिया
नज़्म
तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नौ-ए-इंसाँ में ये सरमाया ओ मेहनत का तज़ाद
अम्न ओ तहज़ीब के परचम तले क़ौमों का फ़साद
साहिर लुधियानवी
नज़्म
करोगे कब तलक नावक फ़राहम हम भी देखेंगे
कहाँ तक है तुम्हारे ज़ुल्म में दम हम भी देखेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो जिन के हाथ में रहता है परचम-ए-इंसाँ
हुए हैं उन के सब अफ़्कार-ए-अम्न अब उर्यां
शिफ़ा कजगावन्वी
नज़्म
जिस ज़मीं पर भी खिला मेरे लहू का परचम
लहलहाता है वहाँ अर्ज़-ए-फ़िलिस्तीं का अलम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कितने माथों के अभी सर्द हैं रंगीन गुलाब
गर्द अफ़्शाँ हैं अभी गेसू-ए-पुर-ख़म कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
कोई दम में हयात-ए-नौ का फिर परचम उठाता हूँ
ब-ईमा-ए-हमिय्यत जान की बाज़ी लगाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तुम से क़ुव्वत ले कर अब मैं तुम को राह दिखाऊँगा
तुम परचम लहराना साथी मैं बरबत पर गाऊँगा