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नज़्म
मैं हूँ 'मजाज़' आज भी ज़मज़मा-ए-संज-ओ-नग़्मा-ख़्वाँ
शाइर-ए-महफ़िल-ए-वफ़ा मुतरिब-ए-बज़्म-ए-दिलबराँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
पहले तो हुस्न-ए-अमल हुस्न-ए-यक़ीं पैदा कर
फिर इसी ख़ाक से फ़िरदौस-ए-बरीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
टूट जाए जिन से तग़ईर-ए-ज़माना का फ़ुसूँ
वो यक़ीं पैदा करें वो हौसला पैदा करें
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
तू ने रम्ज़-ए-क़ल्ब-ए-मख़्फ़ी आश्कारा कर दिए
मा'नी-ए-इल्म-ओ-अमल पर्दा से बे-पर्दा किए
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
वही है शोर-ए-हाए-ओ-हू, वही हुजूम-ए-मर्द-ओ-ज़न
मगर वो हुस्न-ए-ज़िंदगी, मगर वो जन्नत-ए-वतन
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
जब इस अँगारा-ए-ख़ाकी में होता है यक़ीं पैदा
तो कर लेता है ये बाल-ओ-पर-ए-रूह-उल-अमीं पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हाए वो पहली नज़र वो उस की आँखों के पयाम
वो लजा कर मुस्कुरा कर दस्त-ए-नाज़ुक से सलाम