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नज़्म
डर है पड़े न सदमा ज़िल्लत का उस का सहना
चाहो अगर बड़ाई तो कहना बड़ों का मानो
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
फ़स्ल-ए-बहार आई मगर हम हैं और ग़म
हर सम्त से हैं घेरे हुए सदमा-ओ-अलम
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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डर है पड़े न सदमा ज़िल्लत का उस का सहना
चाहो अगर बड़ाई तो कहना बड़ों का मानो
फ़स्ल-ए-बहार आई मगर हम हैं और ग़म
हर सम्त से हैं घेरे हुए सदमा-ओ-अलम