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नज़्म
सोचता हूँ अपनी माँ का हक़ अदा कैसे करूँ
मेरी इज़्ज़त मेरी अज़्मत का सबब है मेरी माँ
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
मैं ने इक दिन ख़्वाब में देखा कि इक मुझ सा फ़क़ीर
गर्दिश-ए-पैमाना-ए-इमरोज़-ओ-फ़र्दा का असीर
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
कोई मुख़्लिस मुझे तुझ सा न मिला तेरे बाद
याद आती है बहुत तेरी वफ़ा तेरे बाद