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नज़्म
दयार-ए-शर्क़ की आबादियों के ऊँचे टीलों पर
कभी आमों के बाग़ों में कभी खेतों की मेंडों पर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
फ़स्ल-ए-बहार आई मगर हम हैं और ग़म
हर सम्त से हैं घेरे हुए सदमा-ओ-अलम
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
नज़्म
ये देश कि हिन्दू और मुस्लिम तहज़ीबों का शीराज़ा है
सदियों की पुरानी बात है ये पर आज भी कितनी ताज़ा है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
ग़ुंचा-ए-दिल मर्द का रोज़-ए-अज़ल जब खुल चुका
जिस क़दर तक़दीर में लिक्खा हुआ था मिल चुका
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हाँ ऐ मसाफ़-ए-हस्ती! मत पूछ मुझ से क्या हूँ
इक अर्सा-ए-बला हूँ इक लुक़मा-ए-फ़ना हूँ
ग़ुलाम भीक नैरंग
नज़्म
क्यों न अपनी हस्ती-ए-नाशाद का शिकवा करूँ
रंज-ओ-ग़म घेरे हों जब मुझ को तो मैं भी क्या करूँ